चाहे राधा हो या हो मीरा, सबके हिस्से में आई ये तन्हाई। तन्हाई में बैठकर दर्द को अपनी क़लम से लिखता हूँ, “मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे जिनको पलट कर नहीं देखा मैंने सिर्फ तेरे लिए। आख़िर चांद भी अकेला रहता हैं सितारों के बीच। तिरी https://youtu.be/Lug0ffByUck